जब मन शांत ना हो तो क्या करें? | What to do when the mind is not calm?

दोस्तों सबसे पहले मैं आपको यह विश्वास दिलाना चाहती हूं, कि इस कहानी के अंत तक आपके चेहरे पर एक मुस्कुराहट होगी क्योंकि इस कहानी को अंत तक ध्यान से सुनने के बाद आप कुछ ऐसा जान लेंगे, जो इस जीवन के रूपांतरण के लिए काफी है, तो चलिए कहानी की शुरुआत करते हैं |

जब मन शांत ना हो तो क्या करें

एक बार एक लड़का एक महात्मा के पास आता है और उनसे कहता है कि महात्मा जी मेरे जीवन में बहुत अशांति है और कृपा कर मेरा | मार्गदर्शन करें जिससे कि मैं  इस अशांति से छुटकारा पा सकूं, वह महात्मा उस लड़के से पूछते हैं कि तुम्हारे जीवन में अशांति क्यों है? फिर वह लड़का उत्तर देता है अत्यधिक विचारों के कारण मेरे भीतर बहुत सारे विचार चलते रहते हैं, जिसके कारण मेरा मन अशांत रहता है फिर भी महात्मा जी मुस्कुराते हैं और उस लड़के से कहते हैं, कि ऊपर उस आकाश में देखो क्या तुम्हें सूर्य देख रहा है? वह लड़का ऊपर आकाश में देखता है और कहता है कि जी | गुरुदेव… देख रहा है फिर भी महात्मा जी उस लड़के से पूछते हैं कि अगर तुम लगातार धूप में खड़े रहो तो क्या होगा? वह लड़का कहता है कि गर्मी लगेगी गुरुदेव और शरीर में बेचैनी पैदा हो जाएगी |

महात्मा जी उस लड़के से पूछते हैं कि अगर धूप में खड़े रहने से तुम्हें गर्मी लगती है तो इसमें दोष किसका है? सूर्य का गर्मी का या तुम्हारा? वह लड़का थोड़ी देर सोचता है और कहता है. कृपा कर आप ही बताइए गुरुदेव वह महात्मा जी मुस्कुराते हैं और उस लड़की से कहते हैं कि सूर्य का काम है गर्मी देना, और गर्मी का काम है गर्मी लगवाना |

इसलिए दोस्त तुम्हारा है कि तुम धूप में जाकर खड़े हुए हो, तुम चाहो तो तुम खाया में जाकर बैठ सकते हो, ठीक उसी प्रकार हमारे मन का स्वभाव है, विचारों और भावनाओं की खिचड़ी पकाना और विचारों और भावनाओं का काम है तुम ही दिशा देखा ना अब उस दिशा में तुम्हें चलना है या नहीं यह सिर्फ तुम्हारे हाथ में है | देखो ध्यान से समझो कि विचार और भावनाएं समस्या नहीं है बल्कि तुम्हारा उनसे जुड़े रहना समस्या है | सोचो कि तुम धूप में खड़े हो और तुम चाह रहे हो कि तुम यह गर्मी ना लगे, क्या यह संभव है? अगर तुम्हें गर्मी से बचना है तो तुम्हें अपनी जगह बदल कर धूप से छाया में जाना है, मनुष्य होने के 4 आयाम हैं मन, दिल, बुद्धत्व यानी की बुद्धि के परे की स्थिति है |

What to do when the mind is not calm?

उसे बुद्धत्व कहा जाता है दूसरे और तीसरे आयामों में हमेशा उथल-पुथल रहती है यानी मन में विचार चलते रहते हैं और दिल में भावनाए होती है और यह दोनों ही आए आप बहुत ही शक्तिशाली है | विचार सैनिक होते हैं और भावनाएं देर तक देखते हैं, ऐसे तो मैसेज समझो जैसे कि कल तुम जैसे खोने से डरते कि आज वह तुम्हारे पास नहीं है | और आज तुम भी उसकी कमी महसूस नहीं होती है, कुछ समय तक हुई थी लेकिन अब नहीं हो रही है, क्योंकि भावनाओं को अलग होने में थोड़ा समय लगता है, विचार तुरंत बदल जाते हैं जैसे अभी तुम कुछ और सोच रहे थे और थोड़ी देर बाद कुछ और सोचने लग जाओगे, इन भावनाओं के कारण ही तुम्हें किसी से प्रेम हो जाता है और फिर वही प्रेम नफरत में बदल जाता है, मित्र शत्रु बन जाता है | 

उसके बाद वह लड़का उस महात्माजी से कहता है कि फिर उपाय क्या है? अपने मन को शांत कैसे करें फिर? भी महात्मा जी उस लड़के से कहते हैं कि उपाय यह है तन के आयाम पर काम करना और यह सबसे आसान तरीका है |

Also Read: “7 Things No One Should Tell You” “7 बात जो किसी को भी नहीं बतानी चाहिए” 

शरीर के स्तर पर हमारी कर्मेंद्रियां है और ज्ञानेंद्रियां है | हमारी कर्मेंद्रियां कल से जुड़ी हुई है, और हमारी ज्ञानेंद्रियां ज्ञान से जुड़ी हुई है, इनके प्रति हम अपनी संवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं और इसका मतलब यह है कि हम जो भी कार्य करें उसे आनंद के साथ कर सकते हैं | जैसे अगर आप पानी पी रहे हो तो पूरी तरह से पानी ही पियो, यानी पानी पीने में अपना 100% दो | ऐसा करने से क्या होगा गुरुदेव? ऐसा करने से तो मन और दिल के आयाम से हटकर शरीर के आयाम पर आ जाओगे, और यह बिल्कुल ऐसा है जैसे कि तुम धूप से हटकर छांव में आ गई, मन और हृदय के आयाम पर अपना काम चल रहा है, लेकिन तुम्हारी जागरूकता तन पर आ गई है जैसे कि सुबह उठो तो सूरज की किरणों को महसूस करो और हवा को महसूस करो, आंख बंद करके पक्षियों की आवाजें सुनो, लगातार तन आयाम पर काम करने से तुम एक दिन हैरान हो जाओगे कि तुम पक्षियों की आवाजें तो कानों से सुन रही हो, लेकिन तुम्हारा चेक शांत हो रहा है, तुमने अपने छत पर कोई कार्य नहीं किया लेकिन फिर भी वह शांत हो रहा है | 

इसीलिए पहला उपाय यह है कि हर कार्य को दंड के आयाम पर जागरूकता के साथ करना और दूसरा उपाय हैं अपने भीतर के नादिया को सुनो, फिर वह लड़का महात्मा जी से पूछता है कि गुरुदेव अपने भीतर के सुर को कैसे सुने? फिर भी महात्मा जी उसे कहते हैं किसी शांत जगह पर जाओ जहां पर कोई शोर ना हो और अपनी आंखें बंद करो और अपने भीतर के स्व को सुनने का प्रयास करो | हैरानी की बात यह है कि वह कभी भी बंद नहीं होता है वह हमेशा बच्चा ही रहता है, फिर वह लड़का पूछता है कि तो फिर उसको मैं अभी और इसी वक्त क्यों नहीं सुन सकता हूं? वह महात्मा कहते हैं कि बाहर के शोर के कारण तुम उसे नहीं सुन पा रहे हो अगर तुम अपने भीतर कि सुर को अभी सुनना चाहते हो तो तुम ही अपने दोनों हाथों से अपने कानो को बंद कर दो और सुनो, तुम देखोगे कि यह सुर बिना किसी यंत्र के बज रहा है और जब तुम्हें से सुनोगे तो तुम अपने हृदय और मन से दूर हो जाओगे और तुम्हारा शांत होने लगेगा |

एक बात हमेशा याद रखना कि मन सबसे ज्यादा सक्रिय तभी होता है, जब इसे तुम्हारे द्वारा ऊर्जा मिलती है अगर तुम अपनी उर्जा को अपने तन को और अपने भीतर के सुर को सुनने पर लगाओगे तो तुम्हारा मन कैसे सक्रिय होंगे? पर समस्या क्या है पता है तुम्हें हम अपने विचारों से और अपनी भावनाओं से लड़ते रहते हैं और इसी में ही अपनी उर्जा  को खत्म कर देते हैं | फिर हमें हर बार की तरह अशांति घेर लेती है | इसीलिए अपने मन को शांत करने के लिए यह दो काम करें पहला अपने मन के आयाम से हटकर टंकी आयाम पर आ जाए और दूसरा उपाय हैं अपने भीतर के सुर को सुने | 

दोस्तों वह लड़का तो उन महात्मा की बातों को समझ जाता है लेकिन क्या समझ पाए हमें कमेंट करके जरूर बताएं दोस्तों आज की यह कहानी आपको कैसी लगी और इस कहानी से आपको और क्या-क्या सीखने को मिला यह भी हमें कमेंट करके जरूर बताएं साथ ही अगर आपको यह कहानी पसंद आई होगी और आपके लिए कारगर साबित हुई होगी तो इसे लाइक करें | दोस्तों हम आपसे फिर मिलेंगे ऐसे ही एक जीवन बदल देने वाली कहानी के साथ तब तक के लिए आप जहां भी रहे खुश रहिए और खुशियां बांटते रहिए धन्यवाद |

Leave a Comment